आत्मबोध (Atmabodh)

SKU EBH230

Contributors

Srimad Shankaracharya, Swami Videhatmananda

Language

Hindi

Publisher

Ramakrishna Math, Nagpur

Pages in Print Book

36

Print Book ISBN

9789385858925

Description

हमारे सनातन वैदिक साहित्य के ज्ञानकाण्ड को ‘उपनिषद्’ कहते हैं । हजारों वर्ष पूर्व भारत के प्रात:स्मरणीय ऋषियों ने जीव-जगत्, आत्मा-परमात्मा, ब्रह्म तथा माया आदि विषयों पर प्रबल जिज्ञासा के साथ जो गहन चिन्तन किया था और अति-मानवीय साधना के द्वारा जो अलौकिक अनुभूतियाँ प्राप्त की थीं, उन्हीं का संकलन ‘उपनिषद्’ या ‘वेदान्त’ कहलाता है । प्रमुख उपनिषदों, ब्रह्मसूत्र तथा श्रीमद्-भगवद्-गीता – इन ‘प्रस्थान’ ग्रन्थों पर आचार्य शंकर ने ललित भाष्य लिखे हैं । वेदान्त के मूल ग्रन्थों का अध्ययन आरम्भ करने की पूर्वतैयारी के रूप में उन्होंने कुछ ‘प्रकरण-ग्रन्थ’ भी लिखे हैं । उन्हीं में ‘आत्मबोध’ नाम का यह छोटा-सा, पर अति महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ भी है । वेदान्त के सभी जिज्ञासुओं तथा साधकों के लिये यह अति उपयोगी है । इसमें मात्र अड़सठ श्लोकों के माध्यम से आत्मतत्त्व का निरूपण किया गया है । इसमें श्रीशंकराचार्य ने समझाया है कि इस आत्मा का बोध होने के लिये क्या-क्या साधना आवश्यक है और आत्मबोध हो जाने से साधक को क्या उपलब्धि होती है । मूल संस्कृत श्लोकों को समुचित प्रकार से समझने के लिये इस पुस्तक में हमने उनका पदच्छेद, अन्वयार्थ तथा सहज हिन्दी में अनुवाद दिया है । साथ ही विद्वानों की सुविधा हेतु अन्त में वर्णक्रम के अनुसार श्लोक-अनुक्रमणिका भी दी है ।

Contributors : Srimad Shankaracharya, Swami Videhatmananda