Description
विश्व का प्रत्येक प्राणी सुखी-सन्तुष्ट जीवन जीना चाहता है। इसके लिये वह निरन्तर प्रयत्नशील भी रहता है। परन्तु देखने में यह आ रहा है कि ऐश्वर्य-समृद्धि तो बढ़ रहे हैं, किन्तु व्यक्ति का सुख-चैन गायब है। अधिकांश व्यक्ति इसके मूल में विद्यमान कारणों को समझ ही नही पाते। अपने बौद्धिक स्तर पर वे जानने का प्रयत्न भी करते हैं। परन्तु निष्फल रहते हैं। आधुनिक शिक्षा एवं मार्गदर्शक तथाकथित प्रबन्धन गुरु बहुत ही सही जानकारियाँ देते हैं जो व्यक्ति को और अधिक दिग्भ्रमित करती हैं। श्रीरामकृष्ण परमहंस एवं स्वामी विवेकानन्दजी की शिक्षायें इस सन्दर्भ में बड़ी स्पष्ट तथा व्यावहारिक हैं। अध्यात्मजननी माँ सारदादेवी का चरित्र उन सद्विचारों की जीवन्त प्रयोगशाला रहा है। उन्होंने अपनी सीधी सादी भाषा में अपने तत्कालीन सहचरों, अनुचरों को जो शिक्षा दी वह त्रिकाल सत्य एवं प्रभावी जीवन प्रबन्धन के लिये मूल मंत्र हैं। माँ सारदादेवी के जीवन प्रसंगों, संवादों, उपदेशों को केन्द्र में रख दु:खों के मूल कारणों को जानकर और उन्हें नष्ट कर कैसे एक सुखी-सन्तुष्ट आनन्दमय जीवन जिया जाय इसके व्यावहारिक उपाय ‘प्रभावी जीवन प्रबन्धन’ शीर्षक इस ग्रन्थ में प्रस्तुत किये गये हैं। सत्संग, अनुशासन, ध्यान आदि विषयों पर वैज्ञानिक ढंग से उदाहरणों सहित प्रकाश डाला गया है।
Contributors : Swami Amartyananda, Swami Urukramananda