माँ की स्नेहछाया में (Ma Ki Sneh Chhaya me)

SKU EBH106

Contributors

Swami Aatmananda, Swami Saradeshananda

Language

Hindi

Publisher

Ramakrishna Math, Nagpur

Pages in Print Book

227

Print Book ISBN

9789385858826

Description

मानव-जाति के उद्धार के लिए युग-युग में नर-रूप धारण करके धराधाम में अवतीर्ण होने वाले परब्रह्म वर्तमान युग में श्रीरामकृष्ण के रूप में अवतीर्ण हुए थे तथा उनकी अभिन्न ब्रह्मशक्ति ने श्रीसारदादेवी के रूप में आविर्भूत होकर युग-प्रयोजन को पूर्ण करने में सहायता की थी।

आज के जड़वादी भोगैकसर्वस्व युग के समक्ष दिव्य मातृभाव का आदर्श रखने के लिए ही मानो माँ सारदा का आगमन हुआ था। उनका जीवन इसी दिव्य मातृभाव की घनीभूत मूर्ति थी। उनके जीवन में यह दैवी मातृत्व का आदर्श अनेकविध पहलुओं में से प्रकट होता दिखाई देता है। इसीलिए उनके व्यक्तित्व में कभी माँ, कभी कन्या, कभी गृहिणी, कभी संन्यासिनी, कभी गुरु, कभी इष्टदेव आदि विभिन्न रूपों को देखते हुए हम विस्मयमुग्ध हो जाते हैं। इन बहुविध रूपों से विभूषित उनके दिव्य व्यक्तित्व में किसी प्रकार पार्थिव अपूर्णता का लेश तक नहीं दिखाई पड़ता। वे पवित्र ही नहीं – पवित्रतास्वरूपिणी हैं। उनके जीवन में प्रेम, करुणा, क्षमा, शान्ति, सरलता, निरभिमानिता, त्याग, वैराग्य, ज्ञान, भक्ति आदि दैवी सम्पदाओं के चरमोत्कर्ष को देखकर उनके चरणों में मस्तक अपने-आप श्रद्धावनत हो जाता है।

श्रीरामकृष्णदेव के लीलासंवरण के पश्चात् लगभग चौंतीस वर्ष इस धराधाम में रहती हुई श्रीमाँ ने असंख्य जीवों का उद्धार किया। जीवों के दुःख-कष्टों से व्यथित हो उन्हें बन्धनों से मुक्त करने के लिए ये करुणामयी जननी दिनरात परिश्रम करतीं! सदा सर्वात्मभाव के सर्वोच्च शिखर पर प्रतिष्ठित रहकर भी वे लोकानुकम्पा से माया का आश्रय ले मन को संसार के सामान्य धरातल पर उतारे रखने का प्रयत्न करतीं। इसके लिए सामान्य नारी की तरह वे संसार के विभिन्न कार्यों में व्यस्त रहतीं; किन्तु उनके अन्दर संसार का स्पर्श तक नहीं था। दीन, दुखी, दुर्बल, पीड़ित, पतित – जो भी उनके निकट आता, उनके अपार्थिव प्रेम और करुणा का स्पर्श पाकर धन्य हो जाता! माँ के बाह्यतः सहज-सरल प्रतीत होने वाले दैनन्दिन जीवन की सामान्य घटनाओं से भी उनके दिव्य स्वरूप की महिमा प्रकट होती है। इसलिए ऐसी घटनाओं के चिन्तन-स्मरण से मनुष्य का मन संसार के परे एक उच्च आध्यात्मिक धरातल पर पहुँच जाता है।

प्रस्तुत पुस्तक में श्रीमाँ के दैनन्दिन जीवन के ऐसे अनेक रंग-बिरंगी चित्र हमें देखने को मिलते हैं। मूल बँगला पुस्तक के लेखक हैं – रामकृष्ण संघ के वयोज्येष्ठ आदरणीय संन्यासी स्वामी सारदेशानन्दजी, जो गोपेश महाराज के नाम से परिचित हैं। गोपेश महाराज उन परम-भाग्यवान व्यक्तियों में से एक हैं, जिन्हें माँ के श्रीचरणों की छत्र-छाया में रहते हुए उनकी सेवा करने का देवदुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ था। पूजनीय लेखक ने परिपक्व अवस्था में अपने स्मृतिसागर का मन्थन करते हुए इस दिव्य अमृत का उद्धार करके अगणित भक्तजनों को पान कराया, जिसके लिए भक्तसमाज उनका चिर-कृतज्ञ रहेगा। इस अमृत से हिन्दी-भाषी पाठक वंचित न रहें, इसलिए रामकृष्ण मिशन, विवेकानन्द आश्रम, रायपुर के सचिव स्वामी आत्मानन्दजी ने मूल बँगला ग्रन्थ का सहज सुन्दर हिन्दी अनुवाद करके रामकृष्ण संघ की त्रैमासिक पत्रिका ‘विवेक-ज्योति’ में धारावाहिक रूप में प्रकाशित किया था। आज श्रीमाँ की ही इच्छा और कृपा से यह अनुवाद पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो सका।

Contributors : Swami  Saradeshananda, Swami Aatmananda