श्रीमाँ सारदादेवी के चरणों में – प्रथम खण्ड (Shri Maa Saradadevi Ke Charano Mein – 1)

SKU EBH288

Contributors

Compilation, Swami Pararupanand, Swami Purnatmananda

Language

Hindi

Publisher

Ramakrishna Math, Nagpur

Pages in Print Book

380

Print Book ISBN

9789393251992

Description

“जब भी धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, भगवान् इस धरती पर अवतार लेते हैं और अनगिनत लोगों का उद्धार करते हैं और अपने माध्यम से धर्म को पुनर्स्थापित करते हैं। जिस समय परब्रह्म नरदेह को स्वीकार कर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं, उस समय उनकी पराशक्ति या ब्रह्मशक्ति उनके साथ अवतरित होती है। इस युग में यही परब्रह्म ‘श्रीरामकृष्ण’के रूप में अवतरित हुए, जबकि पराशक्ति ने उनकी लीला में सहायता करके युग के उद्देश्य को सिद्ध करने के लिए बंगाल के ‘जयरामवाटी’ नामक एक छोटे से गाँव में ‘श्रीसारदादेवी’ के रूप में अवतार लिया। ‘ब्रह्म और ब्रह्मशक्ति अभिन्न हैं’ – श्रीरामकृष्णदेव के इस कथन के अनुसार, श्रीरामकृष्ण और श्रीमाँ सारदा देवी स्वरूपतः अभिन्न हैं, लेकिन अभिव्यक्ति के रूप में उनके जीवन की अलग-अलग विशेषताएँ देखी जा सकती हैं। जब हम श्रद्धावान् होकर उनके विभिन्न गुणों और विशेषताओं का अनुसन्धान करेंगे, तो हमारे जैसे साधक आध्यात्मिक जीवन में उन्नत होंगे और हमारा जीवन ईश्वर के दर्शन से परिपूर्ण हो जाएगा।

“श्रीरामकृष्ण देव ने अपने पिछले जीवन में दिव्य मातृभाव के उपासक के रूप में कार्य किया था और श्री सारदा देवी उसी दिव्य मातृभाव की अमिट छवि थीं। उनका सम्पूर्ण जीवन आदर्श नारीत्व का उच्चतम विकास था। इसी आधार पर वे एक आदर्श पुत्री, एक आदर्श पत्नी, एक आदर्श गृहिणी और एक आदर्श संन्यासिनी भी थीं। यद्यपि उन्होंने शाब्दिक अर्थ में संन्यास को आनुष्ठानिक रूप से नहीं लिया था, फिर भी उनका जीवन एक आदर्श संन्यासी का जीवन था। इसीलिए वे न केवल एक आदर्श शिष्या थीं, बल्कि अनगिनत शिष्यों के लिए एक आदर्श गुरु भी थीं। सामान्यतः वे किसी की माँ, किसी की बेटी, किसी की बहन, किसी की दादी और किसी की ननद थीं। इतने सारे अलग-अलग सम्बन्ध निभाने के बावजूद वे सबसे पहले ‘माँ’ थीं। लौकिक अर्थ में नहीं, पारलौकिक अर्थ में वे सभी की ‘माँ’ थीं, यहाँ तक कि जड़-चेतन, पशु-पक्षी, तक की। उनके दिव्य व्यक्तित्व ने उनके सान्निध्य में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सहज ही आकर्षित कर लिया। श्री माँ पवित्रता की साक्षात प्रतिमूर्ति थीं। उनमें प्रेम, करुणा, क्षमा, शान्ति, ईमानदारी, निःस्वार्थता, त्याग, वैराग्य, ज्ञान, भक्ति और अन्य दिव्य गुण प्रकट हुए थे। “उनके चरणाश्रयी प्रत्येक व्यक्ति को इन गुणों का स्पर्श मिलेगा और उसका जीवन परिपूर्ण और धन्य हो जाएगा। भगवान् श्रीरामकृष्ण के पार्थिव लीलासंवरण के बाद, श्रीमाँ ने अनगिनत जीवों पर कृपा की। वे सदैव वेदान्तिक भक्ति के उच्चतम “स्तर पर थी, फिर भी साधा रण लोगों के प्रति दया भाव से उन्होंने अपनी माया शक्ति का सहारा लेकर अपने मन को सामान्य भूमि पर रखने का प्रयास किया। वे अपने वास्तविक दिव्य स्वरूप को छिपाकर एक सामान्य स्त्री की तरह घर के विभिन्न दैनिक कार्यों में लगी रहती थीं। करुणामयी माँ अपनी सन्तानों को संसार के बन्धनों से मुक्त कराने के लिए दिन-रात प्रयास करती रहती थीं। उनकी कृपा सभी पुरुषों और महिलाओं, विनम्र, दुःखी, दुर्बल और बलशाली, पीड़ित, पतित, पापी और पुण्यात्मा, विद्वान्, तपस्वी और गृहस्थ, युवा और प्रौढ़ पर समान रूप से बरसती थी। कोई भी ऐसा नहीं था जो उनकी कृपा से वंचित हो। उन्होंने न केवल सभी मनुष्यों पर, बल्कि पशु-पक्षियों पर भी कृपा की। इस सम्बन्ध में श्री माताजी के यह बात स्मरणीय है –

“‘यदि मेरा बच्चा मैला हो जाए या धूल में लोट-पोट हो जाए, तो क्या मेरा कर्तव्य नहीं है कि मैं दौड़कर उसे उठाऊँ, साफ करूँ और अपनी गोद में ले लूँ?’’ उनका निश्छल प्रेम जो सभी को गले लगाता था, उनकी सरल भाषा जो श्रोताओं के जीवन को मौलिक रूप से बदलने की शक्ति रखती थी – ये सब अद्भुत थे। अनगिनत नर-नारियों में से जो उनके चरणाश्रयी हो गये और उनके अमृतमय शब्दों को सुनकर धन्य हो गए, उन में से कुछ भक्तों ने उन वार्तालापों को लिपिबद्ध किया है ।

“आज ये वार्तालाप और घटनाएँ हमारे सामने प्रस्तुत हैं। उनके कुछ संवादों और घटनाओं को कोलकाता के ‘उद्बोधन कार्यालय’ ने पुस्तक रूप में प्रकाशित किया। ऐसे अनेक संवाद और प्रसंगों को रामकृष्ण मठ , ढाका के अध्यक्ष स्वामी पूर्णात्मानन्दजी ने बड़े परिश्रम से संग्रहित किया। इसके लिए उन्होंने श्रीमाँ के कई शिष्यों से सामग्री प्राप्त की और उनमें से कुछ की व्याख्या की।”

Contributors : Swami Purnatmananda, Swami Pararupananda, Compilation