Description
सन् 1911 में श्रीरामकृष्णदेव के अन्तरंग लीलासहचर तथा श्रीरामकृष्ण-संघ के प्रथम अध्यक्ष श्रीमत् स्वामी ब्रह्मानन्दजी महाराज ने सर्वप्रथम ‘श्रीरामनाम-संकीर्तन’ संकलित करके प्रकाशित किया था एवं उसे सुर-ताल-बद्ध कराकर बेलुड़ मठ में प्रति एकादशी की सन्ध्या को सामूहिक रूप से उसके गाने की प्रथा प्रचलित की थी। श्रीमहाराज द्वारा प्रवर्तित यह भक्तिरसपूर्ण मधुर ‘राम-नाम’ आज भारत में ही नहीं वरन् भारतेतर देशों में भी अत्यन्त लोकप्रिय हो गया है तथा इसे प्रेम-आदर के साथ गाते हुए अगणित भक्तजन अपार आध्यात्मिक आनन्द अनुभव कर रहे हैं। तथापि यह रामनाम संस्कृत में होने के कारण संस्कृत न जाननेवाले भक्त इसका ठीक अर्थ नहीं समझ पाते और फलस्वरूप उन्हें इसका यथार्थ एवं सम्पूर्ण रसास्वादन नहीं हो पाता है। ऐसे भक्तों की सुविधा के लिए प्रस्तुत पुस्तक में मूल रचना के साथ साथ मूलानुसारी हिन्दी सरलार्थ भी दिया जा रहा है। पुस्तक के अन्त में कुछ भक्तिभावपूर्ण भजन भी जोड़े गये हैं।
Contributors : Swami Brahamananda