श्रीरामनामसंकीर्तन की कहानी (Sri Ramanamsankirtan Ki Kahani)

SKU EBH202

Contributors

Swami Videhatmananda

Language

Hindi

Publisher

Ramakrishna Math, Nagpur

Pages in Print Book

56

Print Book ISBN

9789384883454

Description

रामकृष्ण मठ तथा मिशन के केन्द्रों में इस संकीर्तन को प्रारम्भ हुए एक शताब्दी पूरी हो चुकी है । इसी तथ्य को ध्यान में रखकर रायपुर के रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द आश्रम से प्रकाशित होनेवाली ‘विवेक-ज्योति’ मासिक के सम्पादक स्वामी विदेहात्मानन्द ने प्रामाणिक सामग्री के आधार पर एक प्रबन्ध लिखा, जो उपरोक्त पत्रिका के नवम्बर 2011 से मार्च 2012 के पाँच अंकों के प्रकाशित हुआ । इसी लेखमाला को संकलित करके हमने वर्तमान पुस्तिका का रूप दिया है । संस्कृत में व्युत्पत्ति शास्त्र के अनुसार कीर्त संशब्दने — कीर्तन उच्च स्वर में शब्द करने के अर्थ में प्रयुक्त होता है । जब अनेक लोग मिलकर कीर्तन करें, तो वह संकीर्तन कहलाता है — संघीभूय कीर्तनं संकीर्तनम् । श्रीमद्-भागवत में भक्ति के नौ प्रकार बताये गये हैं — भगवान के नाम तथा गुणों का श्रवण, कीर्तन, स्मरण, चरणसेवा, पूजा, वन्दना, दास्य, सौख्य और आत्मनिवेदन — श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ (7/5/23) वेदान्त के समान ही भक्तिमार्ग में भी श्रवण ही सर्वप्रथम साधन है । इसमें श्रवण का अर्थ है — भगवान के नाम, रूप, लीला तथा गुणों का श्रवण करना और उनका ‘कीर्तन’ करना — यह द्वितीय साधन है । देवर्षि नारद भी अपने भक्तिसूत्र (80) में कहते हैं — स कीर्त्यमान: शीघ्रमेवाविर्भवति अनुभावयति च भक्तान् — अपना कीर्तन किये जाने पर भगवान शीघ्र ही प्रकट हो जाते हैं और भक्तों को अपने स्वरूप का अनुभव कराते हैं ।

Contributors : Swami Videhatmananda