Description
अपने गुरु स्वामी विवेकानन्दजी से आदर्श जीवन की प्रेरणा लेकर भगिनी निवेदिता (सिस्टर निवेदिता या मार्गारेट नोबल) भारत आयीं। पाश्चात्य संस्कृति के बन्धन तोड़कर उन्होंने न केवल भारतीय शिक्षा और संस्कृति तथा भारतीय विचारधारा और जीवनपद्धति को अपनाया बल्कि सनातन हिन्दूधर्म और आध्यत्मिक जीवन स्वीकार कर भारत के सर्वांगीण कल्याणार्थ दीर्घकाल तक बहुत संघर्ष किया। इस उपलक्ष्य में नारी-शिक्षा, सामाजिक उद्बोधन एवं साहित्यिक सेवा में उनका अवदान अपूर्व था।
स्वामीजी ने उन्हें आशीर्वादरूप A Benediction यह अंग्रेजी कविता लिखी थी जिसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है –
माँ का हृदय, वीर की दृढ़ता मलय-पवन की मधुता
ज्वलन्त आर्यवेदी की पावन शक्ति और मोहकता –
ये वैभव सब, अन्य और जो जन के स्वप्न बने हों –
तुम्हें सहज ही आज प्राप्य हो निश्छल भाव ने हों
भारत के भावी पुत्रों की गूँजे तुममें वाणी
मित्र, सेविका और बनो तुम मंगलमय कल्याणी!
परवर्तीकाल में इस कविता का सम्पूर्ण भाव भगिनी निवेदिता के जीवन में रूपायित हुआ था। वे भारत की आजादी के लिए संग्राम करनेवाले क्रान्तिकारियों के लिए प्रेरणास्रोत थीं। उनका राष्ट्रप्रेम उनके हर कार्य में अभिव्यक्त होता था। ऐसा उनका पूर्ण समर्पित जीवन भारतवासियों के लिए वरदान स्वरूप था। इसलिए कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘लोकमाता’ सम्बोधन से उन्हें गौरवान्वित किया है।
Contributors : Pravrajika Aatmaprana, Sau Jyotsana Kirwai