सेवादर्श के आलोक में स्वामी रामकृष्णानन्द (Sevadarsha Ke Alok Me Swami Ramakrishnananda)

SKU EBH194

Contributors

Dr. Kedarnatha Labha, Swami Prameyananda

Language

Hindi

Publisher

Ramakrishna Math, Nagpur

Pages in Print Book

219

Description

श्रीरामकृष्ण के लीलापार्षद स्वामी रामकृष्णानन्द नाम के भीतर छिपी है एक गहरी व्यंजना। आनन्दस्वरूप श्रीरामकृष्ण के आनन्द से आनन्दित रामकृष्णानन्द। यह नाम नहीं है, मानो “रसं ह्येवायं लब्धा नन्दी भवति” (तैत्तिरीय उपनिषद् २/७) – उपनिषद् की इस वाणी की झंकार एक षडक्षर (सोलह अक्षरों वाले) शब्द में है। स्वभावतः यह जानने की इच्छा होती है कि जिनके नाम में ही ऐसी व्यंजना है, उस नाम के नामी का रूप कैसा होगा; किस प्रकार ज्योति-कमल होकर उनके जीवन का शतदल पँखुड़ी-दर-पँखुड़ी विकसित हुआ; क्या अमर-ज्योति ही अपना ताप बिखेर कर अविराम अविच्छिन्न रूप से दीर्घ काल तक चलती है; उनकी जीवन-वीणा का प्रधान सुर क्या है तथा वह सुर किस प्रकार जीवन के भाव-विभाव में झंकृत हुआ है। इसी आकांक्षा एवं वाणी-विग्रह के चरणों में शब्दों का पुष्पहार निवेदित करना ही ‘सेवादर्श’ की रचना की मूल-प्रेरणा है। तथापि इस प्रेरणा के पीछे एक और आनुषंगिक कारण भी है।

प्रायः एक वर्ष पूर्व मायावती अद्वैत आश्रम के अध्यक्ष स्वामी मुमुक्षानन्द जी ने पूज्यपाद स्वामी रामकृष्णानन्दजी की जीवनी की एक पाण्डुलिपि मुझे देखने दी। पाण्डुलिपि उन्होंने स्वामी जगदीश्वरानन्द रचित एवं मेदिनीपुर रामकृष्ण मिशन आश्रम से प्रायः पचास वर्ष पूर्व प्रकाशित स्वामी रामकृष्णानन्द नामक पुस्तक से तैयार की थी। वास्तव में वह पाण्डुलिपि उक्त ग्रन्थ का ही संक्षिप्त रूप थी। बाद में विचार-विमर्श से तय हुआ कि उस पाण्डुलिपि के आधार पर ही मध्यम आकार का एक जीवनी-ग्रन्थ लिखा जायगा। यह प्रयास उसी की उपज है। तथापि मुमुक्षानन्दजी के सहयोग एवं प्रोत्साहन के बिना इस ग्रन्थ का प्रणयन और प्रकाशन कठिन होता।

पुस्तक में ग्यारह अध्यायों में स्वामी रामकृष्णानन्द का जीवन चरित क्रमबद्ध रूप से विवृत्त हुआ है। सब के अन्त में एक परिशिष्ट संयोजित हुआ है। परिशिष्ट में दो संन्यासियों के संस्मरण दिये गये हैं जिनको उन्हें (रामकृष्णानन्दजी को) काफी निकट से देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उन लोगों का संक्षिप्त परिचय भी परिशिष्ट में सन्निविष्ट हुआ है। बाद में पुस्तक का आकार बढ़ जायगा, इसलिए अनेक संस्मरणात्मक निबन्धों का समावेश करना सम्भव नहीं हुआ, यद्यपि संकलन में स्थान नहीं पाने पर भी स्मृतिकथाएँ रामकृष्णानन्द महाराज के सान्निध्य गौरव से समान रूप से उज्ज्वल हैं। परिशिष्ट में और दो विषय संलग्न हुए हैं। एक, रामकृष्णानन्द रचित विवेकानन्द का स्वरूप-आख्यान “विवेकानन्द पञ्चकम्” एवं मैसूर के पण्डितों की सभा में दिया गया रामकृष्णानन्दजी का संस्कृत व्याख्यान।

सेवादर्श के आलोक में स्वामी रामकृष्णानन्द एक सीधा-सादा जीवनी ग्रन्थ है। कथा-विन्यास की सुशृंखला जिस प्रकार के ग्रन्थ को अलंकृत नहीं करती है, उसी प्रकार स्वामी रामकृष्णानन्द के जीवन-वृत्तान्त के तात्विक विवेचन-विश्लेषण से भी ग्रन्थ समृद्ध नहीं हुआ है। उनके जीवन की मुख्य-मुख्य घटनाओं का संग्रह करना जहाँ तक सम्भव हुआ है, वहाँ तक पुस्तक के आकार को बढ़ाये बिना उन्हें केवल सजा दिया है।

पुस्तक के प्रकाशन में सहायता प्रदान करने के लिए रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के अन्यतम सहाध्यक्ष पूजनीय स्वामी आत्मस्थानन्दजी महाराज के प्रति मैं अपनी सश्रद्ध कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। ग्रन्थ की रचना में उत्साह प्रदान करने के लिए महासचिव स्वामी स्मरणानन्दजी, स्वामी गीतानन्दजी एवं स्वामी प्रभानन्दजी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। ग्रन्थ की रचना एवं प्रकाशन के विषय में आरम्भ से अन्त तक निरन्तर सहायता पायी है स्नेहास्पद स्वामी विमलात्मानन्द तथा स्वामी तत्त्वविदानन्द से। उनकी सहायता के बिना इस दुरूह कार्य को सम्पन्न करना सहज साध्य नहीं होता। उन सब को आन्तरिक शुभेच्छा और धन्यवाद देता हूँ। संस्मरणात्मक लेख मूल अँग्रेजी से बंगला में अनूदित हुए हैं। भाषान्तरण में सहायता कर स्वामी जयदेवानन्द मेरी कृतज्ञता के पात्र हुए हैें। श्रीमान् प्रणव बन्द्योपाध्याय भी मेरे धन्यवादार्ह हैं, क्योंकि पाण्डुलिपि तैयार करने में उनसे प्रचुर सहायता पायी है। पुस्तक के व्यवस्थित प्रकाशन के कार्य में उद्बोधन कार्यालय के स्वामी सत्यव्रतानन्द, स्वामी धर्मरूपानन्द एवं स्वामी इष्टव्रतानन्द ने सहायता के हाथ बढ़ाये हैं। उन सब को मैं आन्तरिक धन्यवाद एवं कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। ग्रन्थ की रचना और प्रकाशन के समान श्रमसाध्य एवं (मनोयोगपूर्ण) कार्य में और भी विभिन्न औरों से सहयोग तथा उत्साह मैंने पाये हैं। सबसे मैं कृतज्ञता का ऋण स्वीकार करता हूँ।

वर्तमान ग्रन्थरचना में मेदिनीपुर रामकृष्ण मिशन आश्रम से प्रकाशित ‘स्वामी रामकृष्णानन्द’ पुस्तक का मैं विशेष रूप से ऋणी हूँ। पहले ही उल्लेख किया गया है कि उस ग्रन्थ का उपादान ही प्रस्तुत ग्रन्थ का मुख्य उपजीव्य है। इसके अतिरिक्त, अन्यान्य जिन ग्रन्थों एवं पत्र-पत्रिकाओं की सहायता ली गयी है उनका भी यथास्थान उल्लेख किया गया है। इन सबके सम्मिलत प्रकाशकों में से प्रत्येक के प्रति मैं कृतज्ञ हूँ। स्वामी रामकृष्णानन्द जी की गर्भधारिणी माँ भवसुन्दरी देवी एवं मुम्बई के कावासाजी हॉल के आलोक चित्र दोनों क्रमशः श्री सन्तोष चक्रवर्ती तथा श्री शान्तनु चौधरी के सौजन्य से प्राप्त हुए हैं। उन सब को भी मेरे आन्तरिक धन्यवाद हैं।

महाभारत की कथा है। उन दिनों पाण्डवगण वनवासी थे। द्वैतवन में एक दिन छद्मवेशी धर्म ने युधिष्ठिर से एक चिरन्तन प्रश्न पूछा, ‘कः पन्थाः’ – कौन सा पथ अवलम्बनीय है? अर्थात् जीवन की तीर्थ-यात्रा में कौन-सा साधन देगा भ्रमहीन सही सही (सच्चे) पथ का पता? इस सनातन प्रश्न के उत्तर में मानव का मन दुविधा से ग्रस्त रहा है। परन्तु पाण्डवश्रेष्ठ युधिष्ठिर का निःशंक उत्तर था –

वेदा विभिन्नाः स्मृतयो विभिन्ना

नासौ मुनिर्यस्य मतं न भिन्नम् ।

धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां

महाजनो येन गतः स पन्थाः।

(महाभारत, वन पर्व, २६७/८४)

– ‘पथ के सम्बन्ध में वेद अनेक प्रकार से कहते हैं; जो स्मृति शास्त्र भी भिन्न-भिन्न पथ का निर्देश करता है; और जो भिन्न मत नहीं रखते हैं, वे मुनि ही नहीं है। धर्म की मर्मवाणी (तत्त्व) मानो गुफा की अभेद्य चहारदीवारी में आबद्ध हो गयी है; साधारण लोगों को वहाँ प्रवेश का अधिकार नहीं है। अतएव, ‘महाज्ञानी, महान् धार्मिक पुरुषों ने जिस पथ से गमन किया है, वही पथ है और वह पथ ही अवलम्बनीय है।’ जिस प्रकार प्रातःकालीन अरुणिमा का अवलोकन करते-करते सूर्यमुखी अन्त में अपने आप को स्वयं उन्मीलित कर लेती है उसी प्रकार महापुरुषों के जीवन में गठित आदर्श का अनुसरण कर ही साधक के जीवन में आत्म-जागरण अथवा भगवान का यथार्थ ज्ञान घटित होता है। शास्त्रोपदेश या शास्त्रनिर्दिष्ट लक्ष्य में हम लोगों का विश्वास डगमगा जाता, यदि हमारे सम्मुख महामानव गण नहीं होते जिनके जीवन में शास्त्रों के वचन मूर्तिमन्त हो उठे हैं। वे लोग केवल शास्त्रों के निष्णात पण्डित नहीं; उन लोगों के जीवन में घटित हुआ है बुद्धि के साथ-साथ बोधि (ज्ञान) का एक अपरूप मिलन जिसके फलस्वरूप वे मानव-जीवन के यात्रा-पथ की वर्तिका के स्वरूप हो उठे हैं। इसी प्रकार से एक शक्तिधर महापुरुष हैं स्वामी रामकृष्णानन्द। इसी से इस महाजीवन का अनुध्यान-अनुसरण हम लोगों के लिए अशेष कल्याणकारी सिद्ध होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं।

Contributors : Swami Prameyananda, Dr. Kedarnatha Labha